अक्षय तृतीया पूजा – स्नान
अक्षय तृतीया पूजा – स्नान
अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
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पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैशाख शुक्लपक्ष तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त या ‘अक्षय तृतीया’ के रूप में मनाया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य शुरू करने का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए अक्षय तृतीया के दिन पंचांग तक देखने की कोई आवश्कता नहीं होती है। माना जाता है कि इस दिन गृहस्थ लोगों को अपने धन वैभव में अक्षय बढ़ोतरी करने के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्सा धार्मिक कार्यों के लिए दान करना चाहिए। ऐसा करने से उनके धन और संपत्ति में कई गुना बढ़ोत्तरी होती है।
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अक्षय तृतीया की पावन तिथि पर ही मां गंगा जी का धरती पर आगमन हुआ था।
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यह यज्ञ धन प्राप्ति के लिए किया जाता है।
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मान्यता है सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया की तिथि पर हुई थी।
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अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम भगवान का जन्म हुआ था।
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अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास जी ने महाभारत ग्रंथ लिखना आरंभ किया।
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बदरीनाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं।
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अक्षय तृतीया पर वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
यह सेवा सिर्फ “धर्मनगरी-हरिद्वार” में उपलब्ध है।
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मोक्षप्रदा पतित-पावनी माँ श्री गंगा जी की धरती व देवभूमि के द्वार हरिद्वार की पावन धरा पर हम आपको पूजा-पाठ, दान-पुण्य एवं तीर्थयात्रा करने की समस्त सुविधाएं व सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं।
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धर्मनगरी हरिद्वार में किये गये पूजा-पाठ, दान-पुण्य का सर्वाधिक और अलौकिक लाभ व्यक्ति को मिलता है।
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पुराणों और शास्त्रों के अनुसार धर्मनगरी हरिद्वार को ही पूजा-पाठ, दान-पुण्य करने के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ, महत्वपूर्ण, उत्तम एवं उपयुक्त तीर्थ-स्थान माना गया है, एवं चारधाम तीर्थयात्रा तो होती ही शुरू “धर्मनगरी हरिद्वार” से है।
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पुराणों व शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम एक बार हरिद्वार जा के गंगा स्नान कर पूजा-पाठ व दान पुण्य करना चाहिये, क्योंकि इससे व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हरिद्वार को “मोक्ष का द्वार” भी कहा जाता है।
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धर्मनगरी हरिद्वार भगवान शिव जी, भगवान विष्णु जी और माँ श्री गंगा जी की भूमि है, इसलिये इसको“देवताओं का प्रवेश द्वार” कहते हैं।
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हरिद्वार को “धर्मनगरी”,”माँ श्री गंगा जी की धरती”,”कुम्भ-नगरी”,”देवनगरी”, “मोक्ष का द्वार”, “देवताओं का प्रवेश द्वार” , “हरि का द्वार”, आदि नामों से भी जाना जाता है। भगवान शंकर जी की ससुराल “कनखल” भी हरिद्वार में ही है।इसलिये हरिद्वार को विश्व की “आध्यात्मिक राजधानी” कहा जाता है।
यह वेबसाइट www.snatandharmkarm.com धार्मिक ट्रस्ट “उमा महेश्वर सेवा ट्रस्ट” द्वारा संचालित है।
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इस दिन गंगा जी स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यज्ञ धन प्राप्ति के लिए किया जाता है।
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पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है।
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मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं।
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नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है।
हरिद्वार में इन सभी कार्यों को करने का विशेष महत्व है।
अक्षय तृतीया पूजा एवं स्नान प्रक्रिया विवरण :-
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पूजा के लिये दिनों की कुल संख्या : 1 no.
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स्नान के लिये दिनों की कुल संख्या : 1 no.
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पूजा के लिये पंडितों की कुल संख्या : 1 no.
चैरिटी : Rs. 3,300/Couple/Head
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पूजा के लिये समस्त पूजन सामग्री : Rs. 1100
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पूजा के लिये प्रत्येक पंडित को दक्षिणा : Rs. 1100
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पूजा के लिये एक दिन का यज्ञशाला के लिये दान : Rs. 1100 (Optional)





